जित जित मैं निरखत हूँ प्रश्न उत्तर - Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 8 Jeet Jeet main nirkhat hun Subjective Question Answer

जित जित मैं निरखत हूँ प्रश्न उत्तर - Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 7 Jeet Jeet main nirkhat hun Subjective Question Answer


जित जित मैं निरखत हूँ प्रश्न उत्तर - Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 8 Jeet Jeet main nirkhat hun Subjective Question Answer

जित जित मैं निरखत हूँ

लेखक - पंडित बिरजू महाराज

Q1) लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?

Ans:⇒ लखनऊ और रामपुर से पंडित बिरजू महाराज के गहरे संबंध थे। पंडित बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ में हुआ था। उनके पिता, पंडित अच्छन महाराज, लखनऊ घराने के प्रसिद्ध कथक नर्तक थे। रामपुर में उनकी बड़ी बहनों का जन्म हुआ और वे स्वयं भी वहाँ कुछ समय तक रहे। रामपुर में उन्होंने कथक कला के विकास और अभ्यास के लिए उपयुक्त वातावरण पाया।


Q2) रामपुर के नबाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?

Ans:⇒ रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद इसलिए चढ़ाया गया, क्योंकि बिरजू महाराज के पिता नवाब के दरबार में नौकरी करते थे। बिरजू महाराज भी छोटी उम्र से ही नवाब के यहाँ नाचते थे। लेकिन उनकी माँ को यह पसंद नहीं था कि वे वहाँ नृत्य करें। नौकरी छूटने से उनकी माँ को राहत मिली, और उन्होंने इसे भगवान हनुमान जी की कृपा मानते हुए प्रसाद चढ़ाया।


Q3) नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े ? एवं वहाँ किनके संपर्क में आए ?

Ans:⇒ नृत्य की शिक्षा के लिए पहले पहल बिरजू महाराज हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक से जुड़े। उसी समय वहाँ कपिला वात्स्यायन, लीला कृपलानी आदि के सम्पर्क में आए।


Q4) किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला ?

Ans:⇒ अपने चाचा शम्भू महाराज और पिताजी के साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला।


Q5) बिरजू महाराज के गुरु कौन थे? उनका संक्षिव्त परिचय दें।

Ans:⇒ बिरजू महाराज के गुरु उनके पिता, लच्छू महाराज थे। लच्छू महाराज रामपुर के नबाब के दरबार में नृत्यगुरु के रूप में कार्यरत थे। वे एक उत्कृष्ट कथक नर्तक थे और कला के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा थी। वे स्वभाव से सरल और शांतिपूर्ण व्यक्ति थे, और उन्होंने अपने दुखों को व्यक्त नहीं किया। उनकी कला के प्रति निष्ठा अपार थी। 54 वर्ष की आयु में उन्हें लू लग गई, लेकिन उन्होंने अपनी बीमारी को छुपाए रखा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई।


Q6) बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देनी शुरू किया ?

Ans:⇒ बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा रश्मि जी को अपनी जीवन यात्रा के दौरान लगभग 56 वर्ष की आयु में देना प्रारंभ किया।


Q7) बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया ? वर्णन करें।

Ans:⇒ बिरजू महाराज के जीवन का सबसे दुखद समय वह था, जब उनके पिता जी का निधन हुआ। उस समय उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि पिता जी के अंतिम संस्कार और दसवीं-तेरहवीं की विधि के लिए भी उनके पास पर्याप्त धन नहीं था। इस कठिन परिस्थिति में, उन्होंने मात्र दस दिनों के भीतर दो स्थानों पर कार्यक्रम किए। इन कार्यक्रमों से जो धन प्राप्त हुआ, उसी से उन्होंने अपने पिता जी का अंतिम क्रिया-कर्म संपन्न किया। यह घटना उनके जीवन की सबसे दुखद स्मृतियों में से एक रही।


Q8) शंभु महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध पर प्रकाश डालें।

Ans:⇒ शंभु महाराज, बिरजू महाराज के चाचा थे और उनके बचपन में उन्होंने उन्हें मार्गदर्शन प्रदान किया। शंभु महाराज स्वयं एक प्रख्यात कथक नर्तक थे और बिरजू महाराज की नृत्य साधना में प्रारंभिक प्रेरणा का स्रोत रहे। हालांकि, जब बिरजू महाराज के पिता का निधन हुआ, तब शंभु महाराज ने उनकी किसी भी प्रकार की आर्थिक या अन्य सहायता नहीं की। इस कठिन परिस्थिति में बिरजू महाराज को अपने जीवन में अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा और अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर उन्होंने ख्याति अर्जित की। उनके संघर्ष और लगन ने उन्हें कथक के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध कलाकार बना दिया।


Q9) कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ?

Ans:⇒ कलकत्ता के एक सम्मेलन में बिरजू महाराज ने अपनी नृत्य प्रस्तुति दी, जहाँ दर्शकों ने उनकी अद्भुत प्रतिभा की भूरी-भूरी प्रशंसा की। इस प्रदर्शन का उनके नर्तक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी कला की सराहना के परिणामस्वरूप वे रातोंरात चर्चा में आ गए, और उनके बारे में अखबारों में व्यापक रूप से लिखा गया। इस सफलता के बाद, उन्हें देश-विदेश के विभिन्न स्थानों से आमंत्रण मिलने लगे। इस उपलब्धि ने उनके जीवन में दुख के अंधेरे को समाप्त कर दिया और उनकी पहचान एक महान कथक नर्तक के रूप में स्थापित हो गई। आज बिरजू महाराज कला की दुनिया में एक अद्वितीय व्यक्तित्व हैं।


Q10) संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी ?

Ans:⇒ संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या अत्यंत कठोर और अनुशासित थी। वे प्रतिदिन सुबह चार बजे उठते, चाहे बुखार हो या सर्दी। सुबह पाँच बजे से आठ बजे तक नियमित रूप से रियाज करते और फिर घर लौटते। एक घंटे में तैयार होकर वापस आते और नौ बजे से दो घंटे तक नृत्य की कक्षा लेते। वे संगीत भारती में तीन वर्षों तक कठोर अभ्यास करते रहे। थकान महसूस होने पर वे किसी न किसी वाद्य यंत्र को लेकर बैठ जाते, जिससे उनकी साधना और संगीत के प्रति समर्पण की गहराई स्पष्ट होती है।


Q11) बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे ?

Ans:⇒ बिरजू महाराज विभिन्न वाद्य यंत्रों में निपुण थे। वे सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी और तबला जैसे वाद्य यंत्र बजाते थे। उनका संगीत के प्रति यह बहुआयामी कौशल उनकी नृत्य कला को और अधिक संगीतमय और जीवंत बनाता था।


Q12) बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे ?

Ans:⇒ बिरजू महाराज अपनी माँ को अपना सबसे बड़ा जज मानते थे। उनका मानना था कि उनकी माँ की दृष्टि और राय में सच्चाई और गहराई होती थी, जो उन्हें अपनी कला में सुधार और निखार लाने में मार्गदर्शन प्रदान करती थी।


Q13) अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?

Ans:⇒ अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज बताते हैं कि उनका विवाह केवल 18 वर्ष की आयु में हो गया था। वे कहते हैं कि उस समय अगर उनका विवाह नहीं होता, तो बेहतर होता, क्योंकि विवाह के बाद परिवार की जिम्मेदारियाँ बढ़ गईं, जिससे उनके संघर्षों में भी वृद्धि हुई। इसके कारण वे नृत्य को उतना समय नहीं दे पाए, जितना देना चाहते थे। उनके पिता के निधन के बाद उनकी माँ ने भविष्य की चिंताओं से भयभीत होकर उनका विवाह करा दिया था।


Q14) बिरजू महाराज की अपने शार्गिदों के बारे में क्या राय है ?

Ans:⇒ बिरजू महाराज अपने शागिर्दों के बारे में यह मानते हैं कि एक गुरु का कर्तव्य है कि वह अपने शागिर्दों को पूरी मेहनत और ईमानदारी से सिखाए। वे मानते थे कि जब किसी को कला सिखाई जाए, तो उसे इतनी समझ और क्षमता मिलनी चाहिए कि वह न केवल खुद अच्छा प्रदर्शन कर सके, बल्कि दूसरों को भी सिखाने योग्य हो जाए। इस प्रकार, गुरु का उद्देश्य केवल शिष्य को कला का ज्ञान देना नहीं, बल्कि उसे एक सशक्त और आत्मनिर्भर कलाकार बनाना होता है।


Q15) पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं ?

Ans:⇒ बिरजू महाराज के अनुसार, पुराने नर्तक जहाँ भी उन्हें जगह मिलती, उसी स्थान पर नृत्य प्रदर्शन कर लेते थे और कला को प्रमुख मानते हुए बिना किसी शिकायत के अपनी प्रस्तुति देते थे। जबकि आज के नर्तक मंच की खराबियों और व्यवस्थाओं पर ज्यादा ध्यान देते हैं और उन पर चर्चा करते रहते हैं, जिससे उनकी कला पर कम और बाहरी कारकों पर अधिक फोकस दिखाई देता है।


Q16) पाँच सौ रूपए देकर मैंने गण्डा बँधवाया व्याख्या करें।

Ans:⇒ पाँच सौ रूपए देकर मैंने गण्डा बँधवाया" इस पंक्ति में लेखक ने अपने गुरु के साथ अपने संबंधों को व्यक्त किया है। यह पंक्ति 'जित-जित मैं निरखत हूँ' पाठ से ली गई है।

यह पंक्ति बताती है कि शिष्य बनने की प्रक्रिया में सिर्फ गुरु का आशीर्वाद ही नहीं, बल्कि एक समर्पण और निष्ठा भी आवश्यक होती है। लेखक के अनुसार, जब महाराज जी ने दो प्रोग्राम किए और 500 रुपये अपने पिता को दिए, तब जाकर उन्होंने विधिपूर्वक गण्डा बाँधने की अनुमति दी। गण्डा बंधवाना एक पारंपरिक संस्कार है, जिसे गुरु द्वारा शिष्य को शिष्यत्व की पहचान और अधिकार देने के रूप में माना जाता है। इस पंक्ति में लेखक ने गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा को स्पष्ट किया है।


Q17) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है। व्याख्या

Ans:⇒- "मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है" इस पंक्ति के माध्यम से बिरजू महाराज ने अपनी शिक्षा और कला के प्रति अपनी निष्ठा और ईमानदारी को व्यक्त किया है।

यह पंक्ति 'जित-जित निरखत हूँ पाठ से ली गई है। इस पंक्ति में बिरजू महाराज यह स्पष्ट करते हैं कि वे अपनी कला और ज्ञान को पूरी ईमानदारी से शिष्यों को सिखाते थे। उनका मानना था कि कला को किसी भी प्रकार से संजोकर या बचाकर नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि पूरी तरह से उसे अपने शिष्यों के साथ साझा करना चाहिए। वे यह कहते हैं कि वे किसी भी चीज को अपने लिए नहीं बचाते, बल्कि सब कुछ शिष्यों को बिना किसी लालच और स्वार्थ के सिखाते हैं। इस प्रकार वे कला की पवित्रता और शिक्षण की सच्चाई को दर्शाते हैं।


Q18) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का

Ans:⇒ "मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का" इस पंक्ति में बिरजू महाराज ने अपनी विनम्रता और कला के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया है। यह पंक्ति 'जित-जित मैं निरखत हूँ' पाठ से ली गई है।

यह पंक्ति बताती है कि बिरजू महाराज खुद को कला के सेवक के रूप में देखते हैं और नृत्य के वास्तविक कलाकार को सर्वोच्च स्थान देते हैं। जब वे कहते हैं कि "मेरे आशिक नहीं, आशिक तो नाच के हैं," तो वे यह स्पष्ट करते हैं कि उनका प्रेम और समर्पण नृत्य और कला के प्रति है, न कि किसी व्यक्ति विशेष के प्रति। वे खुद को केवल नृत्य करने वाले के सहायक के रूप में देखते हैं, जबकि वास्तविक सम्मान और महत्व कला को ही प्राप्त है।


Read More: परम्परा का मुल्यांकन प्रश्न उत्तर : Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 7 Parampara Ka Mulyankan Subjective Question Answer


Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url