Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 1 Subjective Question Answer: श्रम विभाजन और जाति प्रथा प्रश्न-उत्तर (मैट्रिक फाईनल परीक्षा 2025)

Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 1 Subjective Question Answer: श्रम विभाजन और जाति प्रथा  प्रश्न-उत्तर (मैट्रिक फाईनल परीक्षा 2025)
 मैट्रिक फाईनल हिंदी परीक्षा 2025

कक्षा 10 के हिंदी प्रश्नों के उत्तर

मैट्रिक फाईनल परीक्षा 2025 मैट्रिक परीक्षार्थियों को अग्रिम बधाई एवं शुभकामनाएँ । विद्यार्थियों के जीवन की पहली बड़ी परीक्षा है मैट्रिक परीक्षा। 10वीं कक्षा के मैट्रिक परीक्षार्थियों के लिए हिंदी विषय अध्याय 1 प्रश्न उत्तर तैयारी के उद्देश्य से WWW.ALLEDUCATIONNEWZ.IN वेबसाइट की ओर से कक्षा 10 के हिंदी प्रश्नों के उत्तर प्रदान किया गया है। Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 1 Subjective Question Answer: श्रम विभाजन और जाति प्रथा प्रश्न-उत्तर। 10वीं कक्षा के परीक्षार्थियों यह अध्याय पर आधारित हिंदी प्रश्नों के उत्तर तैयार करता है वे हिंदी विषय की पूरी तैयारी कर सकेंगे। Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Class 10 Subjective Question Answer || श्रम विभाजन और जाति प्रथा कक्षा 10 हिंदी अध्याय 1 प्रश्न उत्तर 

Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Subjective Question Answer: श्रम विभाजन और जाति प्रथा प्रश्न-उत्तर 

श्रम विभाजन और जाति प्रथा
लेखक - डॉ॰ भीमराव आंबेडकर

Q1. लेखक किस विडंबना की बात करते हैं? विडंबना का स्वरूप क्या है ?
Ans:- लेखक इस विडंबना की बात करते हैं कि आधुनिक युग में भी जातिवाद के पोषकों की कमी नहीं है। यह विडंबना इसलिए है क्योंकि जातिवाद को बढ़ावा देने वाले लोग तर्क देकर जातिवादी व्यवस्था को कायम रखने का प्रयास करते हैं। उनके अनुसार जाति प्रथा श्रम विभाजन का एक स्वरूप है, लेकिन लेखक इसे एक अनुचित भेदभाव मानते हैं।

Q2. जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्यातर्क देते हैं?

Ans:- जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में यह तर्क देते हैं कि आधुनिक सभ्य समाज में कार्य-कुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है। उनके अनुसार जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का ही एक रूप है, इसलिए इसे उचित ठहराते हैं।

Q3. जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्को पर लेखक की प्रमुख आपत्तियाँ क्या है ? 

Ans:- जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्क पर लेखक के प्रमुख आपतियाँ इस प्रकार है कि जाति प्रथा श्रम विभाजन का रूप ले लिया है और किसी सभ्य समाज में श्रम विभाजन व्यवस्था श्रमिकों के विभिन्न पहलुओं में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करता है


Q4. जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती ?

Ans- जाति प्रथा भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं कही जा सकती, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि और योग्यता पर आधारित नहीं है। समाज के निर्माण और विकास के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार अपने कार्य या पेशे का चुनाव कर सके। जाति प्रथा में जन्म के आधार पर कार्य निर्धारित कर दिया जाता है, जो व्यक्ति के स्वाभाविक विकास और स्वतंत्र चुनाव को बाधित करता है।


Q5. जातिप्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है?

Ans - जाति प्रथा मनुष्य को जीवनभर के लिए एक ही पेशे में बांध देती है। हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती जो उसके पैतृक पेशे से अलग हो। इस प्रकार, पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा व्यक्तियों की क्षमता और रुचि के अनुसार काम करने की स्वतंत्रता को बाधित करती है, जिससे योग्य व्यक्तियों को अवसर नहीं मिल पाते और बेरोजगारी की समस्या बढ़ती है। इस प्रकार जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

Q6. लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या किसे मानते हैं और क्यों?

उत्तर - लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या उस निर्धारित कार्य को मानते हैं जिसे लोग अरुचि के साथ केवल विवशतावश करते हैं। ऐसी स्थिति मनुष्य को टालू काम करने और कम काम करने के लिए प्रेरित करती है। निर्धारित कार्य के कारण काम करने वाले का न दिल लगता है, और न ही दिमाग । इस स्थिति में कार्य की कुशलता प्राप्त करना संभव नहीं है। अतः लेखक उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या लोगों की रुचि के खिलाफ, निर्धारित कार्य को मानते है।

7. लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है ?

उत्तर- लेखक ने विविध पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है जो निम्नलिखित हैं अस्वभाविक श्रम विभाजन, बढ़ती बेरोजगारी, अरुचि और विवशता में श्रम का चुनाव, गतिशील एवं आदर्श समाज का तथा वास्तविक लोकतंत्र का स्वरूप आदि ।

Q8. सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को आवश्यक माना है?

Ans: सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने निम्नलिखित विशेषताओं को आवश्यक माना है:

1. समाज में ऐसी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे परिवर्तन संभव हो सके।
2. प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों और उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।

3. समाज के सभी वर्गों में एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव होना चाहिए, ताकि सामंजस्य और आपसी समझ बनी रहे।

इन विशेषताओं से ही एक सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है।

श्रम विभाजन और जाति प्रथा (MCQ) कक्षा 10 हिंदी अध्याय 1 प्रश्न उत्तर 

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